आधार, पैन या वोटर आईडी से नहीं साबित होती भारतीय नागरिकता: बॉम्बे हाई कोर्ट का अहम फैसला

मुंबई, 13 अगस्त 2025। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि आधार कार्ड, पैन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज रखने मात्र से कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं बन जाता। यह टिप्पणी मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कथित तौर पर बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की गई। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर जाली दस्तावेजों के आधार पर एक दशक से अधिक समय तक भारत में रहने का आरोप है।


कोर्ट का फैसला और टिप्पणी

न्यायमूर्ति अमित बोरकर की एकल पीठ ने कहा कि 1955 का नागरिकता अधिनियम भारत में नागरिकता से संबंधित मामलों का मुख्य और नियंत्रक कानून है। यह अधिनियम यह निर्धारित करता है कि भारत का नागरिक कौन हो सकता है, नागरिकता कैसे प्राप्त की जा सकती है और किन परिस्थितियों में इसे खोया जा सकता है। कोर्ट ने अपने 12 पन्नों के फैसले में रेखांकित किया:
केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज होने से कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं बन जाता। ये दस्तावेज पहचान या सेवाओं का लाभ उठाने के लिए हैं, लेकिन ये नागरिकता अधिनियम में निर्धारित बुनियादी कानूनी आवश्यकताओं को समाप्त नहीं करते।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून वैध नागरिकों और अवैध प्रवासियों के बीच स्पष्ट अंतर करता है। अवैध प्रवासियों को नागरिकता अधिनियम में उल्लिखित अधिकांश कानूनी मार्गों के माध्यम से नागरिकता प्राप्त करने से रोका गया है। यह अंतर देश की संप्रभुता की रक्षा और नागरिकों के लिए निर्धारित लाभों को सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

मामले का विवरण

मामले में याचिकाकर्ता, बाबू अब्दुल रऊफ सरदार, पर आरोप है कि वह बिना वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में प्रवेश किया था। उसने कथित तौर पर फर्जीवाड़े के जरिए आधार कार्ड, पैन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और भारतीय पासपोर्ट जैसे दस्तावेज हासिल किए थे। सरदार ने अपनी जमानत याचिका में दावा किया कि वह भारत का वास्तविक नागरिक है और उसके पास आयकर रिटर्न और व्यवसाय पंजीकरण जैसे दस्तावेज हैं, साथ ही वह 2013 से ठाणे जिले में रह रहा है।

हालांकि, कोर्ट ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि दस्तावेजों की प्रामाणिकता की जांच अभी चल रही है। अभियोजन पक्ष ने याचिकाकर्ता के फोन से प्राप्त डिजिटल साक्ष्य, जैसे जन्म प्रमाण पत्र, प्रस्तुत किए, जो उसे और उसकी मां को बांग्लादेशी नागरिक के रूप में दर्शाते हैं। कोर्ट ने कहा कि इन दस्तावेजों की सत्यता का पता जांच पूरी होने के बाद ही लगेगा, लेकिन उनकी मौजूदगी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

जमानत से इनकार, गंभीर आरोप

कोर्ट ने सरदार को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि मामले में आरोप गंभीर हैं। यह सिर्फ अवैध प्रवास का मामला नहीं, बल्कि भारतीय नागरिक होने का दिखावा करने के लिए जाली दस्तावेज बनाने और उपयोग करने का मामला है। कोर्ट ने पुलिस की इस आशंका को भी वाजिब माना कि जमानत मिलने पर याचिकाकर्ता फरार हो सकता है या सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है।

अब्दुल रऊफ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम और विदेशी आदेश के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 9 के तहत, यदि सरकार विश्वसनीय सबूत पेश करती है कि व्यक्ति भारतीय नागरिक नहीं है, तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर आती है कि वह भारत का नागरिक है।

नागरिकता और संवैधानिक प्रावधान

न्यायमूर्ति बोरकर ने अपने फैसले में भारत के संविधान निर्माण के समय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि विभाजन के दौरान बड़े पैमाने पर सीमा पार आवागमन के कारण यह तय करना आवश्यक हो गया था कि नए राष्ट्र के नागरिक के रूप में किसे स्वीकार किया जाए। इसके लिए संविधान में प्रावधान किए गए और संसद को भविष्य में नागरिकता से संबंधित कानून बनाने का अधिकार दिया गया।

राष्ट्रीय सुरक्षा और नीतिगत निहितार्थ

बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला अवैध प्रवास और जाली दस्तावेजों के उपयोग जैसे गंभीर मुद्दों पर प्रकाश डालता है। यह फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकता के कानूनी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह स्पष्ट करता है कि आधार, पैन और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज केवल पहचान के लिए हैं, न कि नागरिकता का प्रमाण।

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