मंजुला श्रीवास्तव: उद्देश्यपूर्ण लेखन और सामाजिक बदलाव की आवाज

मंजुला श्रीवास्तव, मुंबई विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक, एक ऐसी साहित्यिक शख्सियत हैं, जिनकी रचनाएँ यथार्थ और प्रामाणिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करती हैं। उनकी कविताएँ, शायरी और भजन सामाजिक और पारिवारिक मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ उजागर करते हैं। मंजुला जी अपनी रचनाएँ साधारण हिंदी में लिखती हैं, जो पाठकों के लिए सहज और आनंददायक होती है। उनकी उल्लेखनीय रचनाओं में कोई अछूत कैसे हो सकता है, आज़ादी का राज, खुदगर्ज़ ज़माना और बेआबरू शामिल हैं। हाल ही में उनके साथ हुई बातचीत में मंजुला जी ने अपनी लेखन यात्रा, सामाजिक दृष्टिकोण और उद्यमिता के बारे में खुलकर बात की।


मंजुला श्रीवास्तव

प्रश्न: आपकी रचनाएँ सामाजिक मुद्दों पर आधारित होती हैं। लेखन की प्रेरणा कहाँ से मिलती है?

मंजुला: मेरी रचनाएँ मेरे निजी अनुभवों और समाज में देखे गए परिवर्तनों से प्रेरित हैं। मैं समाज के उन पहलुओं को उजागर करना चाहती हूँ, जो अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। मेरी कोशिश रहती है कि मेरी रचनाएँ न केवल विचारों को व्यक्त करें, बल्कि समाज को सकारात्मक दिशा भी दें। मैं चाहती हूँ कि मेरी लेखनी समय की कसौटी पर खरी उतरे और नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बने।

प्रश्न: आपका भजन 'हे श्याम जब हो शाम, राम का नाम निकले' बहुत लोकप्रिय हुआ। इसके पीछे की कहानी क्या है?
मंजुला: यह भजन मेरे दिल के बहुत करीब है। यह आत्मा की पुकार है, जो मोक्ष की इच्छा को व्यक्त करता है। मैंने इसमें कविता और शायरी का मिश्रण किया है, जो इसे पुराने सदाबहार फिल्मी गानों की तरह सुमधुर बनाता है। इसे सोशल मीडिया पर काफी पसंद किया गया, और यह मेरा पहला स्टूडियो-रिकॉर्डेड भजन है। मुझे खुशी है कि यह लोगों के दिलों तक पहुँचा।

प्रश्न: आपने पंचायत और नरसिंह की काव्यात्मक समीक्षा लिखी, जो एक अनूठा प्रयोग है। इसकी प्रेरणा कहाँ से मिली?
मंजुला: मुझे हमेशा से नए प्रयोग करने में रुचि रही है। पंचायत और नरसिंह की कहानियाँ इतनी प्रभावशाली थीं कि मैंने सोचा, क्यों न इनकी समीक्षा को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाए? यह शायद भारत में, या विश्व में भी पहला ऐसा प्रयास है। यह मेरे लिए एक उपलब्धि है और मैं ऐसी रचनात्मक कोशिशें आगे भी करना चाहूँगी।

प्रश्न: आप हास्य कविताएँ भी लिखती हैं। क्या कहना चाहेंगी?
मंजुला: हास्य मेरे लिए जीवन का एक जरूरी हिस्सा है। मैं मानती हूँ कि स्वस्थ मनोरंजन मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। मेरी हास्य कविताएँ पाठकों को हल्का-फुल्का मनोरंजन देती हैं, और यह मेरे लेखन का एक रंग है, जो मुझे बहुत पसंद है।

प्रश्न: आप तुलसी इम्यूनो नैनो रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनी की सीईओ भी हैं। साहित्य और उद्यमिता को कैसे संतुलित करती हैं?
मंजुला: यह मेरे लिए एक सुखद चुनौती है। मेरी कंपनी, जिसके चीफ साइंटिस्ट मेरे पति डॉ. टी. जी. श्रीवास्तव हैं, पूरी तरह स्वदेशी किट्स और रिएजेंट्स बनाती है, जो पहले केवल आयात होते थे। साहित्य मेरे मन को सुकून देता है, जबकि उद्यमिता मुझे सामाजिक योगदान का मौका देती है। दोनों एक-दूसरे को पूरक बनाते हैं।

प्रश्न: भविष्य की योजनाएँ?
मंजुला: मैं और रचनाएँ लिखना चाहती हूँ, खासकर भजन और सामाजिक मुद्दों पर आधारित कविताएँ। साथ ही, हमारी कंपनी के माध्यम से स्वास्थ्य क्षेत्र में और नवाचार लाने की योजना है। मेरा पहला साझा काव्य संग्रह रिश्तों की महक ऑनलाइन उपलब्ध है, और मैं जल्द ही अपने व्यक्तिगत संग्रह पर भी काम शुरू करूँगी।

मंजुला श्रीवास्तव की लेखनी और उद्यमिता समाज को प्रेरित करने का एक अनूठा उदाहरण है। उनकी रचनाएँ न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि समाज को सोचने और बदलने के लिए प्रेरित भी करती हैं।

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