सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राजनीतिक दलों की पारदर्शिता पर चुनाव आयोग को नोटिस, नियम बनाने की मांग

नई दिल्ली, 12 सितंबर 2025 - उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राजनीतिक दलों के पंजीकरण और उनके कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक नियम बनाने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया और सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को इस मामले में पक्षकार बनाने का निर्देश दिया।


न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर इस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, "हम नोटिस जारी करेंगे, लेकिन एक समस्या यह है कि राजनीतिक दलों को अभी पक्षकार नहीं बनाया गया है। वे कह सकते हैं कि आप उनके नियमन की मांग कर रहे हैं, लेकिन वे यहां मौजूद नहीं हैं।" इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने सभी राष्ट्रीय दलों को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया ताकि इस मामले में उनकी राय भी शामिल की जा सके।

याचिका में क्या है मांग?

याचिका में दावा किया गया है कि संविधान की दसवीं अनुसूची और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए के तहत राजनीतिक दलों को वैधानिक मान्यता प्राप्त होने के बावजूद, उनके आंतरिक कामकाज, पारदर्शिता, और जवाबदेही को नियंत्रित करने वाला कोई व्यापक कानून नहीं है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि राजनीतिक दल आयकर अधिनियम की धारा 13ए के तहत कर छूट और दूरदर्शन/आकाशवाणी पर मुफ्त प्रसारण समय जैसी कई सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, लेकिन उनके संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है।

याचिका में निम्नलिखित प्रमुख मांगें की गई हैं:

  1. चुनाव आयोग को निर्देश: राजनीतिक दलों के पंजीकरण और नियमन के लिए स्पष्ट और व्यापक नियम बनाने का आदेश दिया जाए।

  2. सरकार को कानून बनाने का निर्देश: भारत सरकार को राजनीतिक दलों में पारदर्शिता, आंतरिक लोकतंत्र, और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने का निर्देश दिया जाए।

  3. भ्रष्टाचार और काले धन पर रोक: राजनीतिक दलों का दुरुपयोग, जैसे भ्रष्टाचार, काले धन का रूपांतरण, और राजनीति का अपराधीकरण, रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं।

राजनीतिक दलों में पारदर्शिता की आवश्यकता

याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका में जोर देकर कहा कि कुछ "फर्जी" राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा करते हैं। उन्होंने दावा किया कि ऐसे दल भारी मात्रा में धन इकट्ठा करते हैं, जिसका उपयोग काले धन को सफेद करने और अपराधियों को पदाधिकारी नियुक्त करने में किया जाता है। एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया कि आयकर विभाग ने हाल ही में एक ऐसे "फर्जी" राजनीतिक दल का पता लगाया, जो 20% कमीशन लेकर काले धन को सफेद कर रहा था।

कोर्ट का रुख और भविष्य की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए चुनाव आयोग को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही, केंद्र सरकार और भारतीय विधि आयोग को भी नोटिस जारी किया गया है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि सभी संबंधित पक्षों की राय ली जाए, ताकि इस मामले में एक निष्पक्ष और व्यापक निर्णय लिया जा सके।

इस फैसले का महत्व

यह कदम न केवल राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा दे सकता है, बल्कि लोकतंत्र को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोर्ट इस याचिका पर सख्त नियम लागू करता है, तो इससे राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतंत्र और वित्तीय पारदर्शिता में सुधार हो सकता है, जिससे भ्रष्टाचार और काले धन के दुरुपयोग पर अंकुश लगेगा।

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