बरगी नगर, जबलपुर, 24 अक्टूबर 2025: सोशल मीडिया और आधुनिकता की भागदौड़ के दौर में भी जबलपुर के बरगी विकासखंड के ग्राम मनकेड़ी में पारंपरिक तीज-त्योहारों की महक आज भी बरकरार है। भाई दूज के अवसर पर यहां डेढ़ सौ वर्षों से अधिक समय से आयोजित होने वाला चंडी मेला सामाजिक सौहार्द और सांस्कृतिक एकता का अनूठा उदाहरण है। इस मेले की शुरुआत स्वर्गीय खुदा बख्श ने की थी, जिसे उनके वंशज स्वर्गीय कल्लू मालगुजार और स्वर्गीय अहमद मालगुजार ने प्रेम व सौहार्द के साथ आगे बढ़ाया। वर्तमान में ग्राम प्रमुख हफीज मालगुजार और उनके पुत्र परवेज मालगुजार इस परंपरा को जीवंत रखे हुए हैं।
चंडी मेले का आयोजन: परंपरा और उत्साह का संगम
मनकेड़ी के ग्रामीणों, डुमारी झरिया, दिमाग कोकड़े और रामाधार आदिवासी के अनुसार, दीपावली से पहले आसपास के दर्जनभर गांवों जैसे रीमा, टेमर, चौरई, सहजपुरी, हरदुली, बिजोरा, गागंदा आदि में मालगुजार परिवार द्वारा पारंपरिक रूप से हल्दी, चावल और सुपारी भेजकर मेले का न्योता दिया जाता है। स्थानीय ग्राम पटेल और कोटवार द्वारा मुंहबोली (मुनादी) कराई जाती है, जिसके बाद ग्वाल टोली और व्यापारी मेले में शामिल होने पहुंचते हैं।
पान खिलाकर स्वागत, नृत्य और बख्शीश की परंपरा
ग्राम के ग्वाल वंश के प्रमुख कढोरी यादव और प्यारेलाल यादव बताते हैं कि स्थानीय ग्वाल टोली सबसे पहले मालगुजार परिवार के घर पहुंचकर उन्हें सम्मानपूर्वक मेले के लिए लिवाती है। मृदंग की थाप और बांसुरी की धुन पर नाचते-गाते यदुवंशी चंडी माता की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं और माता को ब्याहने की प्रथा निभाई जाती है। इसके बाद मंच पर सभी अतिथियों का पान खिलाकर स्वागत किया जाता है। प्रत्येक ग्वाल टोली के मनमोहक नृत्य प्रदर्शन के लिए मालगुजार परिवार द्वारा बख्शीश के रूप में पुरस्कार दिया जाता है और प्रसाद वितरित किया जाता है।
सामाजिक सद्भाव का प्रतीक
मनकेड़ी का मालगुजार मुस्लिम परिवार डेढ़ सौ वर्षों से सनातन धर्म के पर्वों जैसे दीपावली, दशहरा, होली, रक्षाबंधन और नवरात्र को पूरे गांव के साथ श्रद्धा और उल्लास से मनाता आ रहा है। यह परंपरा धार्मिक सौहार्द और सांस्कृतिक एकता का अनूठा उदाहरण है। ग्राम के अजय नेताम, रवि राज तिवारी, संतलाल झारिया, सुरेश गोंड, रामाधार गोंड, भैया लाल, अमर लाल, नंदलाल गोंड और राजकुमार वंशकार जैसे ग्रामीणों का इस आयोजन में विशेष सहयोग रहता है।
मनकेड़ी का चंडी मेला न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की विविधता और सामाजिक एकता का संदेश भी देता है। यह परंपरा नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है और धर्मनिरपेक्षता का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती है।


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