सुप्रीम कोर्ट की यूपी सरकार को फटकार: बांके बिहारी मंदिर की मुकदमेबाजी को 'हाईजैक' करने पर लगाई लताड़, ट्रस्ट के लिए मांगा हलफनामा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन से जुड़े एक मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने राज्य सरकार पर निजी पक्षों के बीच चल रही मुकदमेबाजी को "हाईजैक" करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह कानून के शासन को कमजोर करता है। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "राज्य सरकार किस हैसियत से निजी विवाद में शामिल हुई? अगर सरकार इस तरह हस्तक्षेप करेगी, तो कानून का शासन खत्म हो जाएगा। आप मुकदमेबाजी को हाईजैक नहीं कर सकते।"


300 करोड़ के फंड पर सवाल
शीर्ष अदालत मथुरा में बांके बिहारी मंदिर के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की प्रस्तावित पुनर्विकास योजना से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता देवेंद्र नाथ गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि बिना उन्हें पक्षकार बनाए, सरकार को 300 करोड़ रुपये की धनराशि सौंप दी गई। सिब्बल ने कहा, "एक निजी मंदिर की कमाई को राज्य को सौंपने का आदेश कैसे दिया जा सकता है?"

ट्रस्ट के गठन पर कोर्ट का निर्देश
उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट को बताया कि मंदिर के प्रबंधन और प्रस्तावित कॉरिडोर के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया है, जिसमें सारी धनराशि ट्रस्ट के पास रहेगी, न कि सरकार के पास। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ट्रस्ट से संबंधित अध्यादेश की प्रति याचिकाकर्ता को सौंपने और संबंधित प्रधान सचिव को 29 जुलाई, 2025 तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

मंदिर कॉरिडोर योजना पर विवाद
सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को मंदिर कॉरिडोर के विकास के लिए सरकार की योजना को मंजूरी दी थी, जिसमें मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि अधिग्रहण कर पार्किंग, भक्तों के लिए आवास, शौचालय और सुरक्षा जांच चौकियां जैसी सुविधाएं विकसित करने की बात थी। हालांकि, याचिकाकर्ता गोस्वामी ने दावा किया कि यह योजना व्यावहारिक नहीं है और इससे मंदिर के धार्मिक व सांस्कृतिक चरित्र को नुकसान पहुंच सकता है। गोस्वामी ने कहा कि उनका परिवार, जो स्वामी हरिदास गोस्वामी का वंशज है, पिछले 500 वर्षों से मंदिर का प्रबंधन करता आ रहा है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में संशोधन
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 15 मई के फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 8 नवंबर, 2023 के आदेश को संशोधित किया था, जिसमें सरकार की योजना को मंजूरी दी गई थी, लेकिन मंदिर के धन के उपयोग की अनुमति नहीं दी गई थी। इस मामले ने अब धार्मिक और प्रशासनिक हलकों में व्यापक चर्चा छेड़ दी है।

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