भारत में हर दशक में होने वाली जनगणना न केवल देश की जनसंख्या का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को नए सिरे से परिभाषित करने का अवसर भी प्रदान करती है। 1 मार्च 2027 से शुरू होने वाली आगामी जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभाओं का परिसीमन होने की संभावना है। यह प्रक्रिया न केवल संसदीय और विधायी सीटों की संख्या में वृद्धि करेगी, बल्कि महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों का आरक्षण लागू करके लैंगिक समानता की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाएगी।
- डिजिटल जनगणना: तेज और पारदर्शी प्रक्रिया
2027 की जनगणना पहली बार पूरी तरह डिजिटल होगी। डिजिटल तकनीक और मैपिंग के उपयोग से जनसंख्या के आंकड़े पहले की तुलना में कहीं अधिक तेजी से, यानी एक से डेढ़ महीने के भीतर, उपलब्ध हो सकेंगे। पहले इस प्रक्रिया में दो साल तक का समय लग जाता था। डिजिटल डेटा की उपलब्धता के कारण परिसीमन आयोग को अपनी सिफारिशें डेढ़ साल के भीतर तैयार करने में आसानी होगी। अनुमान है कि 2028 के अंत तक परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो सकती है, जिसके बाद 2029 के लोकसभा चुनाव नए ढांचे के आधार पर हो सकते हैं।
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लेखक हरिशंकर पाराशर |
- लोकसभा सीटों में वृद्धि
वर्तमान में लोकसभा में 543 सीटें हैं, लेकिन परिसीमन के बाद इनकी संख्या 800 से अधिक हो सकती है। यह वृद्धि जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व को संतुलित करने के लिए जरूरी है। 2002 के 84वें संविधान संशोधन के तहत 2026 तक सीटों की संख्या बढ़ाने पर रोक थी, लेकिन 2027 की जनगणना के बाद यह रास्ता खुल जाएगा। परिसीमन आयोग को यह तय करना होगा कि कितनी नई सीटें जोड़ी जाएंगी और उनका वितरण कैसे होगा।
- महिलाओं के लिए ऐतिहासिक आरक्षण
परिसीमन के साथ ही महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटों का आरक्षण लागू होगा। यह प्रावधान 2023 के नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत पहले ही पारित हो चुका है। यह कदम भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने और नीति-निर्माण में उनकी भूमिका को मजबूत करने की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव लाएगा।
- दक्षिण भारत की चिंताओं का समाधान
जनसंख्या नियंत्रण में दक्षिण भारतीय राज्यों की सफलता के कारण उनकी लोकसभा सीटों में हिस्सेदारी कम होने की आशंका रही है। इस मुद्दे को संबोधित करते हुए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया है कि दक्षिणी राज्यों की सीटें जनसंख्या के अनुपात में कम आधार पर भी निर्धारित की जाएंगी। संविधान इस तरह की व्यवस्था की अनुमति देता है, जैसा कि पूर्वोत्तर राज्यों और कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में पहले से देखा जा सकता है।
- परिसीमन का ऐतिहासिक संदर्भ
भारत में परिसीमन की प्रक्रिया का इतिहास 1950 के दशक से शुरू होता है। 1951 से 1971 तक प्रत्येक जनगणना के बाद सीटों की संख्या बढ़ाई जाती थी। हालांकि, 1976 में परिसीमन पर 2001 तक रोक लगा दी गई थी। 2008 में अंतिम परिसीमन हुआ, जो 2001 की जनगणना पर आधारित था और केवल सीटों के क्षेत्रीय पुनर्गठन तक सीमित था। 2027 का परिसीमन न केवल सीटों की संख्या बढ़ाएगा, बल्कि इसे अधिक समावेशी और संतुलित भी बनाएगा।
- आगे की राह
2027 की जनगणना और परिसीमन भारत के लोकतंत्र के लिए एक नया अध्याय शुरू करेंगे। डिजिटल तकनीक का उपयोग इस प्रक्रिया को तेज, पारदर्शी और कुशल बनाएगा। महिलाओं के लिए आरक्षण और दक्षिण भारत की चिंताओं का समाधान यह सुनिश्चित करेगा कि सभी वर्गों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व उचित रूप से हो। यह परिसीमन न केवल भारत की बदलती जनसंख्या को प्रतिबिंबित करेगा, बल्कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को और मजबूत भी करेगा।
लेखक: [हरिशंकर पाराशर कटनी मध्य प्रदेश]
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