🟠 होसबाले का बयान: “समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शाश्वत नहीं”
नई दिल्ली में आपातकाल की बरसी पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए होसबाले ने कहा,
जब अंबेडकर ने संविधान बनाया था, तब प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द नहीं थे। ये आपातकाल के दौरान जबरन जोड़े गए, जब संसद निष्क्रिय थी और मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे।
होसबाले ने सवाल उठाया,
क्या समाजवाद की विचारधारा भारत के लिए शाश्वत है? क्या अब यह विचार समीक्षा के योग्य नहीं है?
उन्होंने कांग्रेस पर उस दौर के लिए माफी मांगने की मांग भी की और कहा कि जो लोग उस समय संविधान और लोकतंत्र का गला घोंट रहे थे, आज वही उसकी प्रतियां लेकर घूम रहे हैं।
🔴 कांग्रेस का पलटवार: “RSS का संविधान विरोधी चेहरा उजागर”
RSS महासचिव के इस बयान के बाद कांग्रेस ने तीखा हमला बोला। पार्टी ने कहा कि
RSS-भाजपा की सोच संविधान विरोधी है। यह बाबा साहेब के बनाए संविधान को खत्म करने की साजिश है।
कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा,
जब संविधान लागू हुआ था, तब RSS ने इसका विरोध किया था और प्रतियां जलाई थीं। आज वही संगठन इसे बदलने की कोशिश कर रहा है।
कांग्रेस प्रवक्ताओं ने यह भी याद दिलाया कि लोकसभा चुनावों में भाजपा के कुछ नेताओं ने खुलकर कहा था कि अगर उन्हें 400 सीटें मिलती हैं, तो वे संविधान बदल देंगे।
⚖️ विवाद की जड़: कब और कैसे जुड़े ये शब्द?
संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द 1976 में 42वें संशोधन द्वारा शामिल किए गए थे, जब देश आपातकाल की स्थिति से गुजर रहा था। संशोधन के समर्थकों का कहना है कि ये शब्द संविधान की मूल भावना का ही विस्तार हैं, जबकि आलोचकों का मानना है कि इन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध, राजनीतिक लाभ के लिए जोड़ा गया।
🧩 विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार,
-
प्रस्तावना संविधान का मार्गदर्शक तत्व है, जिसे बदला जा सकता है, लेकिन इसके लिए व्यापक राष्ट्रीय सहमति और विधायी प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
-
संविधान में शब्द जोड़ने या हटाने के लिए संविधान संशोधन विधेयक दोनों सदनों से विशेष बहुमत से पारित होना जरूरी होता है।
🗳️ राजनीतिक निहितार्थ
RSS की यह मांग ऐसे समय आई है जब विपक्ष, खासकर कांग्रेस, केंद्र सरकार पर लगातार संविधान और लोकतंत्र को कमजोर करने के आरोप लगा रही है। इस मुद्दे ने विपक्ष को भाजपा और RSS के खिलाफ मजबूत नैरेटिव गढ़ने का अवसर दे दिया है।
‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा की RSS की मांग ने भारतीय राजनीति के केंद्र में संविधान की आत्मा और व्याख्या को ला खड़ा किया है। जहां एक ओर RSS इसे वैचारिक स्पष्टता और ऐतिहासिक शुद्धता का मुद्दा मानता है, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहे हैं।
Post a Comment