यह अलौकिक यात्रा आरंभ हुई चहेली सीतापाला की छोटी बाघनदी के उद्गम स्थल से, जो लांजी से 42 किलोमीटर दूर, वनांचल की गहराइयों में स्थित है। शिवभक्तों ने नंगे पाँव, कांवर कंधे पर उठाए, उबड़-खाबड़ पगडंडियों, पहाड़ी धाराओं, कीचड़ और गहरे जंगलों को पार करते हुए कठिन मार्गों का वरण किया। टिमकीटोला, रिसेवाड़ा, बम्हनवाड़ा, वारी, लोहारा, कालीमाटी और नीमटोला जैसे गांवों से गुजरते हुए यह कावड़ यात्रा जब कोटेश्वर मंदिर पहुंची, तो हर दिशा में सिर्फ आस्था, समर्पण और शिव के प्रति अगाध श्रद्धा ही दिखाई दे रही थी।
इस पुण्य अवसर पर सत्य सनातन सेवा संघ के राष्ट्रीय संरक्षक अशोक कुमार शुक्ला भी अपने अनुयायियों संग चहेली पहुंचे और वहीं से पवित्र जल लेकर पदयात्रा के माध्यम से भगवान कोटेश्वर महादेव का अभिषेक किया। उनका भावपूर्ण समर्पण श्रद्धालुओं में नई ऊर्जा का संचार करता दिखा।
पर्यावरणीय चेतना और शासन से आग्रह
श्री शुक्ला ने शिवभक्तों से अपील की कि पूजा कार्य में प्लास्टिक पात्रों का उपयोग न करें। उन्होंने स्पष्ट कहा कि प्लास्टिक न केवल पर्यावरण का अपमान है, बल्कि ईश्वर की सेवा में भी अनुपयुक्त है — क्योंकि प्लास्टिक पात्रों में चढ़ाया गया जल भोलेनाथ तक नहीं पहुंचता। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से पूर्ण प्रतिबंध की मांग की है।
इसके साथ ही उन्होंने चहेली तक के मार्ग की दयनीय स्थिति पर चिंता जताई और शासन से सीसी सड़क निर्माण की पुरजोर मांग की। उन्होंने बताया कि जल स्रोत तक पहुंचने के लिए पांच बरसाती नालों को पार करना पड़ता है, जिनमें अनेक श्रद्धालु फिसलकर गिर जाते हैं, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है।
घने जंगलों की गोद में आस्था का संकल्प
लांजी से रिसेवाड़ा मार्ग होते हुए गढ़माता मंदिर के मोड़ से चहेली की ओर जाने वाला यह दुर्गम मार्ग शिवभक्ति की अग्निपरीक्षा बनकर सामने आता है। जंगल की सघनता, दलदली रास्ते और ऊबड़-खाबड़ ज़मीन को पार करते हुए शिवभक्त जब उद्गम स्थल पर पहुंचते हैं, तो उनकी आंखों में भक्ति का तेज और मन में शिव आराधना की ज्वाला साफ़ दिखाई देती है।
यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि श्रद्धा की अग्निपरीक्षा है — जहां हर क़दम पर प्रकृति की चुनौतियाँ हैं, और हर चुनौती पर भारी शिवभक्ति का उत्साह।
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