ESHRE की वार्षिक बैठक में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
नई दिल्ली/पेरिस। आधुनिक जीवनशैली में प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग अब केवल पर्यावरण ही नहीं, मानव प्रजनन प्रणाली के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है। हालिया शोध में पहली बार यह पुष्टि हुई है कि मानव वीर्य (शुक्राणु द्रव) और कूपिक द्रव (फॉलिक्युलर फ्लूड) में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई है। इस सनसनीखेज खोज की घोषणा पेरिस में आयोजित यूरोपीय सोसायटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन एंड एम्ब्रियोलॉजी (ESHRE) की 41वीं वार्षिक बैठक में की गई।
🔬 क्या कहता है शोध?
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69% महिलाओं के कूपिक द्रव और 55% पुरुषों के वीर्य में माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए।
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अध्ययन 29 महिलाओं और 22 पुरुषों पर आधारित था।
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ये कण आकार में 5 मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं, जो शरीर की गहराई तक पहुँच सकते हैं।
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PTFE (टेफ्लॉन) सबसे सामान्य माइक्रोप्लास्टिक पाया गया, जो 41% पुरुषों और लगभग एक-तिहाई महिलाओं में मिला।
🧫 प्रजनन प्रणाली पर खतरा: कैसे?
शुक्राणु और अंडाणु द्रवों में इन सूक्ष्म प्लास्टिक कणों की उपस्थिति ने प्राकृतिक गर्भाधान और आईवीएफ (In Vitro Fertilization) की सफलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये कण:
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शुक्राणुओं की गतिशीलता को प्रभावित कर सकते हैं।
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अंडों की गुणवत्ता और निषेचन क्षमता में बाधा डाल सकते हैं।
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भ्रूण के विकास पर भी दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकते हैं।
📌 इन स्रोतों से फैल रहा है माइक्रोप्लास्टिक:
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टेफ्लॉन कोटेड बर्तन (PTFE)
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खाद्य पैकेजिंग में प्रयुक्त पॉलीप्रोपाइलीन
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पॉलीस्टाइनिन युक्त थर्मोकोल पैकेजिंग
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वायु, जल, भोजन और प्लास्टिक बोतलों के उपयोग से शरीर में पहुँच रहे हैं सूक्ष्म प्लास्टिक कण
🩺 विशेषज्ञों की राय:
प्रजनन विशेषज्ञों के अनुसार, यह खोज मानव प्रजनन स्वास्थ्य के लिए एक चेतावनी है। अब यह अध्ययन आवश्यक हो गया है कि माइक्रोप्लास्टिक किस हद तक गर्भधारण की दर को प्रभावित कर रहा है और क्या यह आने वाली पीढ़ियों पर वंशानुगत असर डाल सकता है।
📣 क्या करें बचाव के लिए?
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प्लास्टिक कंटेनरों में गर्म खाना न रखें।
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स्टील, कांच या मिट्टी के बर्तनों का अधिक प्रयोग करें।
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पैकेज्ड पानी और प्लास्टिक बोतलों के विकल्प अपनाएं।
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स्वस्थ जीवनशैली और खानपान पर ध्यान दें।शुक्राणु और अंडाणु जैसे सूक्ष्म लेकिन जीवन के लिए अनिवार्य तत्वों तक माइक्रोप्लास्टिक की पहुँच, न केवल मानव प्रजनन क्षमता बल्कि पूरी मानव जाति के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा रही है। यह शोध सतर्कता का संकेत है — न केवल वैज्ञानिकों के लिए, बल्कि आम जनता, नीति-निर्माताओं और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी।
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