परिजनों द्वारा पुलिस अधीक्षक कार्यालय में दी गई शिकायत के अनुसार, लोचन सिंह को 1 से 4 जुलाई के बीच बेलखेड़ा थाने में हिरासत में रखकर पुलिस कर्मियों द्वारा बेरहमी से मारपीट की गई। आरोप है कि 5 जुलाई को उसे दोबारा थाने बुलाकर फिर मारपीट की गई और पुलिस ने रुपये की मांग की। इस प्रताड़ना से क्षुब्ध होकर लोचन सिंह ने जहर खा लिया, जिससे उसकी अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हो गई।
परिजनों ने पुलिस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि यह न केवल एक व्यक्ति की मौत है, बल्कि कानून के रखवालों द्वारा मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
आयोग ने त्वरित लिया संज्ञान
मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए संज्ञान लिया है। आयोग की भोपाल मुख्य पीठ में कार्यवाहक अध्यक्ष राजीव कुमार टंडन की एकलपीठ ने इसे प्रथम दृष्टया मानव अधिकारों के उल्लंघन का मामला माना है। आयोग की क्षेत्रीय कार्यालय प्रभारी फरजाना मिर्जा ने बताया कि समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करते हुए, जबलपुर के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से जांच प्रतिवेदन एक माह में मांगा गया है।
प्रशासन पर दबाव
मानव अधिकार आयोग के हस्तक्षेप के बाद अब प्रशासन पर पारदर्शी और निष्पक्ष जांच का दबाव है। अगर जांच में पुलिस प्रताड़ना की पुष्टि होती है, तो संबंधित पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कड़ी विभागीय और कानूनी कार्रवाई होना तय है।
जनाक्रोश और सवाल
यह घटना न केवल एक संवेदनशील मौत का मामला है, बल्कि प्रदेश में किसानों और आम नागरिकों की कानूनी सुरक्षा व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। सवाल उठता है कि यदि किसान पुलिस थाने में भी सुरक्षित नहीं है, तो फिर वह न्याय के लिए कहां जाएगा?
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